Thursday, August 2, 2012

ऐसा क्यूँ होता है.....

                                                   



तनहा यूँही चलते चलते,
दस्तक कर गया एक सवाल!
क्या कभी सोचा किसी ने,
ऐसा होगा मेरे देश का हाल !
मानो जैसे बुझ ही गयी ,
थी जली जो पराक्रम की लौ!
थम गयी वो आंधी,
और गयी कहीं वो क्रांति सो!

निन्द्रगास्त हो गया क्यूँ,
आज सबका  स्वाभिमान है!
खो गया इस भीड़ में कहीं,
मानवता का भी ज्ञान है !
एक आवाज़ में भी कभी,
उठ जाता एक संग्राम था!
मानो जैसे सशक्तता का ,
मिला सभी को वरदान सा था!\

होता जिस देश कभी ,
शिष्टाचारों का बसेरा था !
ऐसा ही पूर्णकालिक होता ,
वो भारत देश मेरा था !
मात पिता का जिस देश में,
होता इष्ट बराबर स्थान था !
बनकर आज रह गए वो ही,
महत्त्वहीन कोई सामान सा !

परवर्ती के  शिक्षण की खातिर,
पूँजी लुटाये जाते हैं !
फिर वृधावस्था में  वो ही ,
हर दिन ठुकराए जाते हैं!
सब देख के ये मन रोता है ,
क्यूँ आज मेरा जग सोता है !
है सक्षम हर जन यहाँ,
फिर भी ऐसा क्यूँ होता है !

मिलता था हर नारी को,
कभी एक देवी जैसा मान !
आज रौंदी जाती कुचली जाती ,
एक गलित कोंपल के सामान !
मस्तक पर धर आँचल ,
इक ओर सुसज्जित होती है!
और कहीं लाखों की भीड़ में ,
सरेआम वो लज्जित होती हैं !

जिस देश में हर बेटी ,
बाबुल का आँगन  महकाती है !
क्यूँ फिर वो ही वधु बन ,
हर  दिन सुलगाई जाती है !
सब देख के ये मन रोता है ,
क्यूँ आज मेरा जग सोता है !
है सक्षम  हर जन यहाँ ,
फिर भी ऐसा क्यूँ होता है !




नीलम .............